Monday, October 20, 2014

सम्मान – आत्मीयता का प्रथम चरण

होता हो... सम्राट वही, जिसके शीर्ष पर ताज है,

पर प्रतिष्ठा, पूंजी, पूर्णता का, सम्मान कब मोहताज है?


आज यह जगत जहाँ खड़ा है, वहाँ से एक और विश्वयुद्ध की हद, महत दूरी पर नहीं है। क्या आप बता पाएंगें कि, संसार में वैमनस्य का वर्धन क्यों हो रहा है ? क्यों द्वेष अपनी पराकाष्ठा पर है ? वैर क्यों इतना पोषण प्राप्त कर रहा है?

प्रश्नों की इस शृंखला के जिम्मेदार प्रत्युत्तर के रूप में, पूर्णरूपेण उच्छृंखल(बेलगाम) हो कर, सर उठाए जो खड़ा है, वो है – असम्मान।

रत्न मत ढूंढो, यहाँ तो दीपक जलते हैं, ये तो वो जगह है, जहाँ मानव ढलते हैं।।

समाज में भ्रातृत्व एवं आत्मीयता के पुनर्स्थापन हेतु कटिबद्ध, कामयाबी के दस वर्षों को पूर्ण करने जा रहे, योगी डीवइन सोसाइटी के एक उपक्रम - ‘आत्मीय विद्यामंदिर’, जो कि अपनी प्रार्थना सभा की एक विशेष शैली के लिए भी जाना जाता रहा है। विद्यालय के ‘सत्यम हाउस’ द्वारा निर्देशित सप्ताह ‘सम्मान – आत्मीयता का प्रथम चरण’ (Respect - First step of Atmiyata), गत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी से दशमी तक (13 से 18 अक्टूबर 2014) मनाया गया।

छह दिनों तक चले समय के इस दौर में सत्यम हाउस के छात्रों, शिक्षकों और सदस्यों का पूर्ण उत्साह और उमंग के साथ योगदान रहा। बताया गया कि वास्तव में सम्मान सभ्य समाज का एक आवश्यक अंग क्यों है? इसकी उपस्थिति से क्या लाभ है और अनुपस्थिति से क्या क्षति ?

“सम्मान व्यक्ति का नहीं, व्यक्तित्व का होता है”

‘सम्मान’ विषय पर आधारित इस तरह के कथन, नई-पुरानी सभी तरह की कहानियाँ, कविताएं, प्रेरक-प्रसंग एवं चलचित्र प्रस्तुत किए गए। अच्छे कार्य की प्रशंसा होनी ही चाहिए, फिर चाहे वो किसी कुख्यात व्यक्ति द्वारा ही क्यों न किया गया हो, वह व्यक्ति फिर से ऐसा कुछ अच्छा करने को प्रेरित होगा। और इस तरह से उसका जीवन सामान्यता की ओर अग्रसर होगा। किसी को सम्मान देने के लिए प्रौढ़ता, प्रतिष्ठा और पद आवश्यक नहीं बल्कि योग्यता, प्रतिभा और सुजनता होनी चाहिए।

सत्यम हाउस ने इस बात पर भी विशेष बल दिया कि सम्मान केवल सजीवों का ही नहीं बल्कि भावनाओं, संवेदनाओं और उम्मीदों का भी होना चाहिए। आपसी सम्मान से समाज में सोहार्द का पनपना और उससे समय, धन, ऊर्जा का सदुपयोग होना स्वाभाविक प्रक्रिया है। समाज विकास के पथ पर अग्रसर होता है। सम्मान, आज के समय की मांग है।

हाउस द्वारा किए गए सम्मान के महिमा-मंडन को प्रशंसको द्वारा सराहा तो खूब गया, किंतु इस विनम्र प्रयास का मूल्यांकन तो आधारित होगा, प्रशंसको के वर्तन में आने वाले परिवर्तन पर।
लेखक:  पुष्पक सर

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